दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥

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Last updated on : Wed, 29-Mar-2023 Hindi-gujarati


 नमो नमो दुर्गे सुख करनी ,नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी ,तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥

शशि ललाट मुख महाविशाला ,नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥

रूप मातु को अधिक सुहावे ,दरश करत जन अति सुख पावे ॥

तुम संसार शक्ति लै कीना ,पालन हेतु अन्न धन दीना ॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला ,तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी ,तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ,ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥

रूप सरस्वती को तुम धारा ,दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ,परगट भई फाड़कर खम्बा ॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ,हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ,श्री नारायण अंग समाहीं ॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा ,दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ,महिमा अमित न जात बखानी ॥

मातंगी अरु धूमावति माता ,भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी ,छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥

केहरि वाहन सोह भवानी ,लांगुर वीर चलत अगवानी ॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै ,जाको देख काल डर भाजै ॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला ,जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत ,तिहुँलोक में डंका बाजत ॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ,रक्तबीज शंखन संहारे ॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी ,जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥

रूप कराल कालिका धारा ,सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ,भई सहाय मातु तुम तब तब ॥

अमरपुरी अरु बासव लोका ,तब महिमा सब रहें अशोका ॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ,तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें ,दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ,जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी , योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥

शंकर आचारज तप कीनो , काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ,काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥

शक्ति रूप का मरम न पायो , शक्ति गई तब मन पछितायो ॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी , जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा , दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो , तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥

आशा तृष्णा निपट सतावें , मोह मदादिक सब बिनशावें ॥

शत्रु नाश कीजै महारानी , सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥

करो कृपा हे मातु दयाला , ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ , तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै , सब सुख भोग परमपद पावै ॥

देवीदास शरण निज जानी , कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

॥दोहा॥

शरणागत रक्षा करे भक्त रहे नि:शंक ,

मैं आया तेरी शरण मेंमातु लिजिये अंक ॥

 ॥ इति श्री दुर्गा चालीसा ॥